Saturday, 17 September 2011

कर्तव्य


विश्वविजित होने का स्वप्न देखने वाले सिकन्दर और उनके गुरु अरस्तू एक बार घने जंगल में कहीं जा रहे थे। रास्ते में उफनता हुआ एक बरसाती नाला पडा।
अरस्तू और सिकन्दर इस बात पर एकमत न हो सके कि पहले कौन नाला पार करे। उस पर वह रास्ता अनजान था, नाले की गहराई से दोनों नावाकिफ थे। कुछ देर विचार करने के बाद सिकन्दर इस बात पर ठान बैठे कि नाला तो पहले वह स्वयं ही पार करेंगे। कुछ देर के वाद विवाद के बाद अरस्तू ने सिकन्दर की बात मान ली। पर बाद में वे इस बात पर नाराज हो गये कि तुमने मेरी अवज्ञा की तो क्यों की। इस पर सिकन्दर ने एक ही बात कहीमेरे मान्यवर गुरु जी, मेरे कर्तव्य ने ही मुझे ऐसा करने को प्रेरित किया। क्योंकि अरस्तू रहेगा तो हजारों सिकन्दर तैयार कर लेगा। पर सिकन्दर तो एक भी अरस्तू नहीं बना सकता।
गुरु शिष्य के इस उत्तर पर मुस्कुरा कर निरुत्तर हो गये।

प्रेरक प्रसंग

महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के काटलुक गांव में एक प्राईमरी स्कूल था। कक्षा चल रही थी।
अध्यापक ने बच्चों से एक प्रश्न किया  यदि तुम्हें रास्ते में एक हीरा मिल जाए तो तुम उसका क्या करोगे?
मैं इसे बेच कर कार खरीदूंगा एक बालक ने कहा।
एक ने कहामैं उसे बेच कर धनवान बन जाउंगा।
किसी ने कहा कि वह उसे बेच विदेश यात्रा करेगा।
चौथे बालक का उत्तर था किमैं उस हीरे के मालिक का पता लगा कर लौटा दूंगा।
अध्यापक चकित थे, फिर उन्होंने कहा किमानो खूब पता लगाने पर भी उसका मालिक न मिला तो?
बालक बोला,  तब मैं हीरे को बेचूंगा और इससे मिले पैसे को देश की सेवा में लगा दूंगा।
शिक्षक बालक का उत्तर सुन कर गद्गद् हो गये और बोले, शाबास तुम बडे होकर सचमुच देशभक्त बनोगे।
शिक्षक का कहा सत्य हुआ और वह बालक बडा होकर सचमुच देशभक्त बना,
उसका नाम थागोपाल कृष्ण गोखले।